तो कहो, अब क्यों वापस आए हो?

तो कहो साहव, अब क्यों वापस आये हो?

क्या राह भटक तुम आए हो?

जिस शख्स की तलाश है तुमको,

वह तो कबका गुम चुका है,

उसकी जिंदगी का सूरज 

कबका ढल चुका है,

उसके पुराने घर के दरवाजे पर,

कई अरसे से ताला पड़ा है,

जो वक्त की मार सहते-सहते अब जंग खा चुका है!


तो कहो, अब क्यों वापस आए हो?

क्या राह भटक तुम आए हो?

जो तुमने झूठे वादों के महल सजाए थे,

वह तो कबके ढह चुके हैं,

जो तुमने ख्वाब दिखाए थे,

वो अक्सर बाजारों में बिकते हैं,

फिर अब क्यों वापस आए हो?

क्या राह भटक तुम आए हो?

या फिर किसी की बिखरी आत्मा को अब 

जार-जार करनेका इरादा लाए हो?


जो हाथ कभी तुम्हारे सर पर रहता था,

अब उसकी कोमलता लुप्त हो चुकी है,

उसमें कसैली झूर्रियां पड़ चुकी हैं,

जिस कांधे पर तुम अपना सर रखते थे,

अव उसमें जरा सी भी शक्ति नहीं रही है,

तो अब क्यों वापस आए हो?

ठहरोगे न?

या जाने का इरादा लाए हो?

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