कुछ चलचित्र
ये असमंजस, ये संसय और ये उलझनें, जिनको जितना सुलझाने का प्रयास करता हूं मैं, उतना ही उलझती जाती है! हर एक बार थोड़ा सा आगे बढ़कर, पीछे मुड़ता हूं तो कुछ नजर नहीं आता सिवाय उसी धुंधालहट भरी ज़िन्दगी के, जिससे भागने का प्रयास न जाने कब से कर रहा हूं मैं! बस एक ही आभास होता है कि जहां से सफर शुरु किया था मैंने, एक बार फिर. जीवन उसी जगह बापस लौट आया है! मेरा जीवन एक पहेली बन के रह गया है, एक पहेली जिसे सुलझाने की कसमकस में मैं स्वयं एक पहेली बन जाता हूं! कभी वो विचारों का भंवर मेरे मन की निश्चलता में ठीक उसी प्रकार की अशांत तरंगे उत्पन्न करता है जो तरंगे पानी में पत्थर डालने पर उत्पन्न होती है और तब उस पानी की चंचलता का दृष्य देखने लायक होता है! कभी-कभी सोचता हूं कि मैं बड़ा ही क्यों हुआ, मैं फिर से बच्चा बन जाना चाहता हूं! "एक अनजान अबोध बालक" जिसे जीवन की बिस्मताओं, सुख-दुख सही-गलत आदि....का कोई ज्ञान न हो! मैं कभी बड़ा होना ही नहीं चाहता,उसी अनभिज्ञाता के पर्दे के पीछे गुम जाना चाहता हूं, मैं फिर से इक बार मेरे बचपन को जीना चाहता हूं, महशूश करना चाहता हूं, उस मां की ममता और ...